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मणिकर्णिका घाट पर कितने शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है?




मणिकर्णिका घाट: वाराणसी के महाशमशान का अद्भुत रहस्य

वाराणसी, जिसे हम बनारस भी कहते हैं, भारतीय संस्कृति और धार्मिक तात्पर्य की एक महत्वपूर्ण नगरी है। यहां के घाट न केवल प्राचीन हैं, बल्कि उनमें अनगिनत रहस्य भी छिपे हैं। इनमें से एक है मणिकर्णिका घाट

मणिकर्णिका घाट का महत्व:

  1. स्नान: मणिकर्णिका घाट पर कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी और वैशाख माह में स्नान करने का खासा महत्व है। इस दिन घाट पर स्नान करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।
  2. श्मशान घाट: मणिकर्णिका घाट गंगा नदी के तट पर एक शमशान घाट है जिसे तीर्थ की उपाधी प्राप्त है। यहां पर जिसकी भी अंतिम संस्कार होता है, उसको सीधे मोक्ष मिलता है। यहां के शवदाह कार्य 3000 से भी ज्यादा समय से निरंतर चल रहा है।
  3. वैश्याओं का नृत्य: चैत्र नवरात्री की अष्टमी के दिन मणिकर्णिका घाट में वैश्याओं का विशेष नृत्य का कार्यक्रम होता है। ऐसा करने से उन्हें इस तरह के जीवन से मुक्ति मिलती है।
  4. चिता की राख से होली: फाल्गुन माह की एकादशी के दिन मणिकर्णिका घाट में चिता की राख से होली खेली जाती है। इस दिन शिव के रूप विश्वनाथन बाबा, अपनी पत्नी पार्वती जी का गौना कराकर अपने देश लोटे थे।

2014 की सीएनएन रिपोर्ट के अनुसार, मणिकर्णिका घाट, शहर के सबसे पुराने श्मशान घाटों में से एक है, जो हर साल 32,000 शवों को जलाने के लिए जिम्मेदार है। एक बार शव का अंतिम संस्कार हो जाने के बाद, परिवार राख को गंगा में बिखेर देता है




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